मारुतीची आरती
सत्राणें उड्डाणें हुंकार वदनीं ।
करि डळमळ भूमंडळ सिंधूजळ गगनीं ।
कडाडिलें ब्रह्मांड धाके त्रिभुवनिं ।
सुरवर नर निशाचर त्या झाल्या पळणी ॥ १ ॥
जय देव जय देव जय श्री हनुमंता ।
तुमचेनी प्रसादें न भियें कृतांता ।
जय देव जय देव ॥ धृ. ॥
दुमदुमलें पाताळ उठिला प्रतिशब्द ।
थरथरल्या धरणीवर मानिला खेद ।
कडकडिले पर्वत उड्डुगण उच्छेद ।
रामीं रामदासा शक्तीचा शोध ॥ २ ॥
जय देव जय देव जय श्री हनुमंता ।
तुमचेनी प्रसादें न भियें कृतांता ।
जय देव जय देव ॥
मारुती स्तोत्र
भीमरूपी महारुद्रा । वज्रहनुमान मारुती । वनारि अंजनीसूता । रामदूता प्रभजना ॥१॥
महाबली प्राणदाता । सकळां ऊठवी बळें । सौख्यकारी शोकहर्ता । धूर्त वैष्णव गायका ॥२॥
दिनानाथा हरीरूपा । सुंदरा जगदंतरा । पाताल देवता हंता । भव्य शेंदूरलेपना ॥३॥
लोकनाथा जगन्नाथा । प्राणनाथा पुरातना । पुण्यवंता पुण्यशीला पावना परतोषका ॥४॥
ध्वजांगें उचली बाही । आवेशें लाटला पुढें । कालग्रि कालरुद्राग्रि । देखतां कापती भयें ॥५॥
ब्रह्यांडें माईल नेणों । आवळे दंतपंगती । नेत्राग्रीं चालिल्या ज्वाळा । भृकुटी ताठिल्या बळें ॥६॥
पुच्छ तें मुरडिलें माथां किरीटें कुंडलें वरी । सुवर्ण घटि कासोटी । घंटा किंकिणि नागरा ॥७॥
ठकारे पर्वताऐसा । नेटका सडपातळू । चपलांग पाहतां मोठें । महाविद्युल्लतेपरी ॥८॥
कोटिच्या कोटि उड्डाणें । झेंपावे उत्तरेकडे । मंद्राद्री-सारिखा द्रोणू । क्तोधें उत्पाटिला बळें ॥९॥
आणिला मागुती नेला । आला गेला मनोगतीं । मनासी टाकिले मागें । गतीसी तुळणा नसे ॥१०॥
अणुपासूनि ब्रह्मांडा । एवढा होत जातसे । ब्रह्मांडाभोंवत वेढे । वज्रपुच्छ घालवूं शके ॥११॥
तयासी तुळणा कोठें । मेरु मंदार धाकुटे । तयासी तुळणा कैशी । ब्रह्मांडीं पाहतां नसे ॥१२॥
आरक्त देखिलें डोळां । गिळिलें सूर्यमंडळा । वाढतां वाढतां वाढे । भेदिल शून्यमंडळा ॥१३॥
भूत प्रेत समंधादि । रोगव्याधि समस्तहि । नासती तुटती चिंता । आनंदें भीमदर्शनें ॥१४॥
हे धरा पंधरा श्र्लोकी । लाभली शोभली भली । दृढ देहो नि:संदेहो । संख्या चंद्रकळा गुणें ॥१५॥
रामदासीं अप्रगणू । कपिकुळासी मंडणू । रामरूप अंतरात्मा । दर्शनें दोष नासती ॥१६॥
॥ भीमरूपी स्तोत्र संपूर्ण ॥१॥
जय देवा हनुमंता
जय देवा हनुमंता । जय अंजनी सुता ॥
ॐ नमो देवदेवा । राया रामाच्या दूता ॥
आरती ओवाळीन । ब्रह्मचारी पवित्रा ॥ धृ. ॥
वानररुपधारी । ज्याची अंजनी माता ॥
हिंडती वनांतरी । भेटी झाली रघुनाथा ।
धन्य तो रामभक्त । ज्याने मांडिलीं कथा ॥ १ ॥
सीतेच्या शोधासाठीं । रामें दिधली आज्ञा ॥
उल्लंघुनी समुद्रतीर । गेला लंकेच्या भुवना ।
शोधूनी अशोकवना। मुद्रा टाकिलि खुणा ॥ २ ॥
सीतेसी दंडवत । दोन्ही कर जोडून ॥
वन हे विध्वंसिलें । मारिला अखया दारूण ॥
परतोनी लंकेदरी । तंव केले दहन ॥ ३ ॥
निजवळें इंद्रजित । होम करीं आपण ॥
तोही त्वां विध्वंसिला लघुशंका करून ।
देखोनी पळताती ॥ महाभूतें दारूण ॥ ४ ॥
राम हो लक्षुमण । जरी पाताळीं नेले ॥
तयांच्या शुद्धीसाठी । जळी प्रवेशे केले ॥
अहिरावण महिरावण । क्षणामाजीं मर्दिले ॥ ५ ॥
देउनि भुभु:कार । नरलोक आटीले ॥
दीनानाथा माहेरा त्वां ॥ स्वामिसी सोडविले ॥
घेऊनि स्वामी खांदी । अयोध्येसी आणिलें ॥ ६ ॥
हनुमंत नाम तुझें । किती वर्णू दातारा ॥
अससी सर्वठायी । हारोहारीं अंबरा ॥
एका जनार्दनीं ॥ मुक्त झाले संसारा ॥ ७ ॥
बजरंग बाण
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥
जय हनुमंत संत हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥
जन के काज बिलंब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥
जैसे कूदि सिंधु महिपारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुरलोका॥
जाय बिभीषन को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा॥
बाग उजारि सिंधु महँ बोरा। अति आतुर जमकातर तोरा॥
अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा॥
लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर नभ भई॥
अब बिलंब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अंतरयामी॥
जय जय लखन प्रान के दाता। आतुर ह्वै दुख करहु निपाता॥
जै हनुमान जयति बल-सागर। सुर-समूह-समरथ भट-नागर॥
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले॥
ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा॥
जय अंजनि कुमार बलवंता। शंकरसुवन बीर हनुमंता॥
बदन कराल काल-कुल-घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक॥
भूत, प्रेत, पिसाच निसाचर। अगिन बेताल काल मारी मर॥
इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की॥
सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै। राम दूत धरु मारु धाइ कै॥
जय जय जय हनुमंत अगाधा। दुख पावत जन केहि अपराधा॥
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत कछु दास तुम्हारा॥
बन उपबन मग गिरि गृह माहीं। तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं॥
जनकसुता हरि दास कहावौ। ताकी सपथ बिलंब न लावौ॥
जै जै जै धुनि होत अकासा। सुमिरत होय दुसह दुख नासा॥
चरन पकरि, कर जोरि मनावौं। यहि औसर अब केहि गोहरावौं॥
उठु, उठु, चलु, तोहि राम दुहाई। पायँ परौं, कर जोरि मनाई॥
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता॥
ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल॥
अपने जन को तुरत उबारौ। सुमिरत होय आनंद हमारौ॥
यह बजरंग-बाण जेहि मारै। ताहि कहौ फिरि कवन उबारै॥
पाठ करै बजरंग-बाण की। हनुमत रक्षा करै प्रान की॥
यह बजरंग बाण जो जापैं। तासों भूत-प्रेत सब कापैं॥
धूप देय जो जपै हमेसा। ताके तन नहिं रहै कलेसा॥
उर प्रतीति दृढ़, सरन ह्वै, पाठ करै धरि ध्यान।
बाधा सब हर, करैं सब काम सफल हनुमान॥
हनुमान चालीसा
श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधारि।
बरनउं रघुबर विमल जसु, जो दायकु फल चारि॥
बुद्धिहीन तनु जानिकै, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार॥
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥
महावीर विक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी॥
कंचन बरन बिराज सुवेसा। कानन कुण्डल कुंचित केसा॥
हाथ वज्र औ ध्वजा बिराजै। काँधे मूँज जनेऊ साजै॥
शंकर सुवन केसरीनन्दन। तेज प्रताप महा जग वन्दन॥
विद्यावान गुणी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया॥
सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा। विकट रुप धरि लंक जरावा॥
भीम रुप धरि असुर संहारे। रामचन्द्र के काज संवारे॥
लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघुवीर हरषि उर लाये॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
सहस बदन तुम्हरो यश गावैं। अस कहि श्री पति कंठ लगावैं॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा॥
जम कुबेर दिकपाल जहां ते। कवि कोबिद कहि सके कहां ते॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा॥
तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना। लंकेश्वर भये सब जग जाना॥
जुग सहस्त्र योजन पर भानू । लील्यो ताहि मधुर फ़ल जानू॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लांघि गए अचरज नाहीं॥
दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रक्षक काहू को डरना॥
आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हांक तें कांपै॥
भूत पिशाच निकट नहिं आवै। महावीर जब नाम सुनावै॥
नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
संकट ते हनुमान छुड़ावै। मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥
सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा॥
और मनोरथ जो कोई लावै। सोइ अमित जीवन फ़ल पावै॥
चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा॥
साधु सन्त के तुम रखवारे। असुर निकन्दन राम दुलारे॥
अष्ट सिद्धि नवनिधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता॥
राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा॥
तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै॥
अन्तकाल रघुबर पुर जाई। जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई॥
और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेई सर्व सुख करई॥
संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
जय जय जय हनुमान गोसाई। कृपा करहु गुरुदेव की नाई॥
जो शत बार पाठ कर सोई। छूटहिं बंदि महा सुख होई॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ ह्रदय महँ डेरा॥
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रुप।
राम लखन सीता सहित ह्रदय बसहु सुर भूप॥
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