नादान सा जो दिल है
ये आज भी कुछ मांगता है
कहीं नीले आसमान के नीचे
खुद ही को क्यों धुंडता है
मिले सन्नाटे की ये पंक्तियां
जिसे कोन लिखता है
कहीं शोर मिले तो ये
क्यों अनसुना सा करता है
ना जाने ये दिल क्या पूछता है
बेवक्त की बारिश हो तो
भीग जाता है
दर्द मिले राह मै कहीं
तो दो पल ठहर जाता है
ना जाने क्या चाहता है
खुद को भूल जाता है
अपनोको ही याद करता है
जो देख कर भी अनदेखा करदे
उन्हिसे क्यों प्यार करता है
ये दिल बहुत सताता है
फिर भी ये संभल जाता है
अपनोके दर्द को भूल कर
अपनोसे प्यार करता है
रूठकर भी हसता है
ये दिल ये क्यों करता है
बाते ये बहुत करता है
फिर भी अपनी बात ये
अपनोसे क्यों न कहता है
ये दिल तू बहुत रुलाता है
आंखो से बहुत कुछ कहता है
हवा का झोका है ये दिल
जो इस नीले आसमा के नीचे
चंचल होके घूमता है
कहीं हल्का सा झोका होके गुजरता है
तोह कहीं यादों का तूफ़ान उठा देता है
क्यों नादान सा ये दिल है
जो आज भी कुछ मांगता है
-योगेश खजानदार