एक बात

एक बात छुपी है दिल में
दर्द की चादर ओढे
कुछ शिकायतें हैं उसे
कोई तो आ के कहे
ये सन्नाटे की रात
हर तरह से बढे
गहरे अंधेरो में मुझे
कोई यु ही ना छोडे
वो लफ्ज है ठहरे
रोशनी की राह देखे
केह दो उने की
दर्द से नाता जोडे
सुबह का इंतजार किसे
जो अपना ही भूले
वो प्यार ही गुमशुदा
जिसमें अपना ही न मिले
फिर क्यूँ है ये दर्द
हर आसुओं में दिखे
कैसे सहे ये जख्म
कोई तो आ के कहे

कोणत्याही टिप्पण्‍या नाहीत:

टिप्पणी पोस्ट करा

Leave a Reply

Featured Post

तत्वनिष्ठ की व्यक्तिनिष्ठ || Marathi Blogger || Marathi Lekh ।।

माझ्या मनाचा नेहमी घोळ होतो, की एखादी व्यक्ती तत्वनिष्ठ असावी की व्यक्तिनिष्ठ. पण मग एखादी व्यक्ती कोणत्याच तत्वाला मानत नसेल तर त्याला काय ...